
Loan Settlement एक ऐसी प्रक्रिया होती है जिसमें उधारकर्ता और बैंक के बीच समझौता कर लिया जाता है कि लोन की पूरी बकाया राशि के बजाय कुछ निश्चित राशि देकर लोन को बंद कर दिया जाए। हालांकि, यह प्रक्रिया उधारकर्ता के लिए थोड़ी राहत भरी हो सकती है, लेकिन इसका नकारात्मक असर गारण्टर (Guarantor) पर भी पड़ता है। दरअसल, गारण्टर वह व्यक्ति होता है जो लोन लेने वाले की गारंटी देता है और यह जिम्मेदारी लेता है कि अगर उधारकर्ता भुगतान नहीं कर पाए, तो वह बैंक को भुगतान करेगा।
इसीलिए, जब लोन सेटलमेंट होता है, तो उसे क्रेडिट ब्यूरो में “settled” के रूप में रिकॉर्ड किया जाता है, जो कि एक प्रकार की डिफॉल्ट की स्थिति मानी जाती है। परिणामस्वरूप, यह जानकारी गारण्टर की क्रेडिट रिपोर्ट में भी जुड़ सकती है, जिससे उसका CIBIL स्कोर गिर सकता है। इसके साथ ही, अगर गारण्टर भविष्य में खुद किसी प्रकार का लोन या क्रेडिट कार्ड लेना चाहता है, तो उसे रिजेक्शन का सामना करना पड़ सकता है।
इसके साथ ही, अगर बैंक को लगता है कि सेटलमेंट उचित नहीं था या राशि पूरी नहीं मिली, तो वह कानूनी तौर पर गारण्टर से बकाया वसूली कर सकता है। इसलिए, गारण्टर बनने से पहले यह जरूरी है कि व्यक्ति पूरी जानकारी ले और जोखिमों को समझे। साथ ही, नियमित रूप से CIBIL रिपोर्ट की निगरानी करना, समय पर अपडेट लेना और बैंक से लिखित सहमति लेना भी गारण्टर की जिम्मेदारी होनी चाहिए।
जब कोई व्यक्ति बैंक या वित्तीय संस्था से लोन लेता है, तो अक्सर बैंक किसी गारण्टर (Guarantor) की मांग करता है। यह गारण्टर वह व्यक्ति होता है जो यह आश्वासन देता है कि अगर लोन लेने वाला व्यक्ति (Borrower) समय पर लोन नहीं चुका पाया, तो वह इसकी जिम्मेदारी उठाएगा। यह एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है, क्योंकि इसमें गारण्टर की खुद की वित्तीय साख (Financial Standing) दांव पर लग जाती है। परंतु जब बात Loan Settlement की आती है, तो कई लोगों के मन में यह सवाल उठता है — “क्या लोन सेटलमेंट के बाद गारण्टर पर कोई असर पड़ता है?” आइए इस विषय को आसान भाषा में समझते हैं।
सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि Loan Settlement और Loan Repayment में क्या अंतर होता है। आमतौर पर, जब कोई लोन लेने वाला व्यक्ति अपने पूरे लोन को EMI के ज़रिये समय पर चुका देता है, तो इसे Loan Closure या Repayment कहा जाता है। लेकिन जब व्यक्ति किसी कारणवश पूरा लोन नहीं चुका पाता हैं और बैंक के साथ कुछ राशि पर समझौता कर लेता है, तो इसे Loan Settlement कहा जाता है। यह एक ऐसा समझौता होता है जिसमें बैंक बकाया राशि का कुछ हिस्सा लेकर लोन को “सेटल” मान लेता है।
अब सवाल उठता है कि जब लोन सेटल हो जाता है, तो इसका गारण्टर पर क्या प्रभाव पड़ता है? इस प्रश्न का उत्तर सीधा और आसान है — हां, असर पड़ता है। हालांकि यह असर कई बातों पर निर्भर करता है, जैसे कि सेटलमेंट का प्रकार, सेटलमेंट रिपोर्टिंग, और गारण्टर की भूमिका।
आगे हम इस लेख में विस्तार से जानेंगे कि कैसे और कितना असर पड़ता है, क्या इससे बचा जा सकता है, और गारण्टर को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। चलिए अब आगे बढ़ते हैं।
लोन गारण्टर वह व्यक्ति होता है जो किसी और के लिए लोन लेने में उसकी मदद करता है, लेकिन खुद लोन नहीं लेता। जब कोई व्यक्ति बैंक से लोन लेता है और बैंक को लगता है कि उसे लोन देने में जोखिम हो सकता है, तो वह एक गारण्टर की मांग करता है। गारण्टर यह वादा करता है कि अगर लोन लेने वाला व्यक्ति (borrower) लोन नहीं चुका पाया, तो वह उसकी जगह लोन चुकाने की जिम्मेदारी लेगा।
इसका मतलब यह है कि गारण्टर सिर्फ नाम भर नहीं होता हैं, बल्कि वह कानूनी रूप से उस लोन का जिम्मेदार भी होता है। अगर लोन डिफॉल्ट हो जाए (यानि समय पर नहीं चुकाया जाए), तो बैंक गारण्टर से भी पैसे मांग सकता है। इसलिए गारण्टर बनना एक बड़ी जिम्मेदारी होती है, जिसे सोच-समझकर ही स्वीकार करना चाहिए।
यह एक ऐसी वित्तीय प्रक्रिया होती है जिसमें बैंक या वित्तीय संस्था लोन लेने वाले व्यक्ति को पूरी बकाया लोन की राशि को चुकाने के बजाय कम राशि देकर लोन निपटाने का मौका देती है। यह सुविधा उन लोगों के लिए होती है जो किसी कारण से अपना लोन समय पर नहीं चुका पाते हैं और लगातार डिफॉल्ट कर रहे होते हैं।
सेटलमेंट के तहत बैंक एकमुश्त राशि (लंपसम अमाउंट) पर सहमति बना सकता है, जिससे लोन बंद हो जाता है। हालांकि, यह ध्यान रखना जरूरी है कि Loan Settlement करने से आपका CIBIL स्कोर प्रभावित हो सकता है, जिससे भविष्य में आपको लोन लेने में मुश्किल हो सकती है। इसलिए, इसे अंतिम विकल्प के रूप में ही अपनाना चाहिए।
जब कोई व्यक्ति अपने पर्सनल लोन की EMI समय पर चुकाने में असमर्थ हो जाता है और लंबे समय तक बकाया राशि जमा हो जाती है, तो बैंक या वित्तीय संस्था Loan Settlement का विकल्प देती है। इसमें बैंक ग्राहक को पूरी बकाया राशि के बजाय रियायती रकम (discounted amount) चुकाने का मौका देता है, जिससे लोन का मामला निपट जाता है।
सेटलमेंट की प्रक्रिया में ग्राहक और बैंक के बीच बातचीत होती है, जहां बैंक इस बात की पुष्टि करता है कि ग्राहक लोन का पूरा भुगतान नहीं कर सकता हैं। इसके बाद, बैंक एक सिंगल-शॉट पेमेंट ऑफर देता है, जो आमतौर पर बकाया लोन राशि से कम होता है। जब ग्राहक इस सहमत राशि का भुगतान कर देता है, तो बैंक लोन को “Settled” के रूप में रिपोर्ट करता है। हालांकि, यह CIBIL स्कोर पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है क्योंकि इसे “Complete Payment” नहीं माना जाता हैं।
इसलिए, Loan Settlement को अंतिम विकल्प के रूप में ही चुनना चाहिए और अगर संभव हो, तो लोन रीपेमेंट प्लान, लोन री-स्ट्रक्चरिंग या अन्य वित्तीय समाधान पर विचार करना चाहिए ताकि CIBIL Score खराब न हो।
निम्नलिखित दस्तावेजों की जरुरत होती हैं:
अगर आप इसे ऑनलाइन अप्लाई करना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए आसान स्टेप्स को फॉलो करें:
बैंक की वेबसाइट या ऐप पर जाएं
कस्टमर सपोर्ट सेक्शन देखें
सेटलमेंट करने के लिए रिक्वेस्ट फॉर्म भरें
जरूरी दस्तावेजो को अपलोड करें
सबमिट करें और बैंक की तरफ से जवाब आने का इंतजार करें
बैंक के ऑफर को समझें
भुगतान करें
हालांकि, Loan Settlement और Credit Card Loan Settlement दोनों का उद्देश्य कर्जदार को राहत देना होता है, लेकिन इनमें कुछ महत्वपूर्ण अंतर भी होते हैं।
अंतर के बिंदु | Loan Settlement | Credit Card Loan Settlement |
प्रकार | किसी भी प्रकार के लोन (पर्सनल, होम, कार, एजुकेशन, आदि) का निपटारा | केवल क्रेडिट कार्ड के बकाया राशि का निपटारा |
सेटलमेंट प्रक्रिया | बैंक एकमुश्त राशि को तय करता है, जिसे चुकाने पर लोन सेटल हो जाता है। | क्रेडिट कार्ड कंपनी एक तय की गई राशि पर समझौता करती है। |
CIBIL स्कोर पर प्रभाव | CIBIL स्कोर 50-100 पॉइंट तक गिर सकता है और भविष्य में लोन लेना मुश्किल हो सकता है | CIBIL स्कोर पर ज्यादा प्रभाव पड़ता है, और नए क्रेडिट कार्ड पाना मुश्किल हो सकता है। |
भविष्य में लोन मिलने की संभावना | होम लोन, कार लोन या अन्य लोन प्राप्त करने में समस्या आ सकती है | क्रेडिट कार्ड कंपनियां कार्ड जारी करने से इनकार कर सकती हैं। |
Loan Settlement का आपके CIBIL स्कोर पर सीधा और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जब कोई व्यक्ति किसी बैंक या NBFC से लोन लेता है और किसी कारणवश पूरी राशि चुकाने में असमर्थ होता है, तो बैंक उसे एक समझौता करने का मौका देता है, जिसे Loan Settlement कहा जाता है।
हालांकि, Loan Settlement और Loan Closure में बहुत बड़ा अंतर होता है। अगर आप अपने लोन की पूरी राशि चुकाकर उसे बंद करते हैं, तो यह आपकी क्रेडिट रिपोर्ट में “Closed” के रूप में दर्ज होता है, जिससे आपका CIBIL स्कोर बेहतर होता है। लेकिन अगर आपने लोन की कुछ राशि बैंक के साथ समझौते के तहत माफ करवा ली है, तो इसे “Settled” के रूप में रिपोर्ट किया जाता है, जो आपके क्रेडिट स्कोर को नुकसान पहुंचा सकता है।
अगर आपने लोन सेटल कर लिया है और अब CIBIL स्कोर सुधारना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कदम उठा सकते हैं:
यहां कुछ जरुरी बिंदुओं पर ध्यान देने की जरुरत है, जो आपको सही Loan Settlement सर्विस चुनने में मदद करेंगे:
सर्विस प्रदाता की प्रमाणिकता को चेक करें
सेटलमेंट की सर्विस को लेने से पहले, यह सुनिश्चित करें कि जिस सर्विस प्रदाता से आप मदद ले रहे हैं, वह वित्तीय संस्थाओं और बैंकों के साथ रजिस्टर्ड और प्रमाणित हो। एक भरोसेमंद सर्विस प्रदाता ही आपको सही मार्गदर्शन और सहायता प्रदान कर सकता है। ऑनलाइन रिव्यू और ग्राहक की फीडबैक देखना एक अच्छा तरीका हो सकता है।
सेवा शुल्क और अन्य खर्चों की भी जांच करें
कई सर्विस प्रदाता सेवा शुल्क भी लेते हैं, लेकिन यह सुनिश्चित करें कि शुल्क ज्यादा न हो और कोई छिपे हुए खर्च न हों। सर्विस प्रदाता से पहले से समझौता करें कि कौन सी सेवाएं मुफ्त हैं और किनके लिए आपको अतिरिक्त भुगतान करना होगा।
सेटलमेंट प्रक्रिया को समझें
सर्विस प्रदाता द्वारा दी जाने वाली सेटलमेंट की प्रक्रिया को ध्यान से समझें। क्या वे आपकी पूरी स्थिति को समझते हैं और बैंक के साथ बातचीत करने के लिए आपको बेहतर समाधान प्रदान करते हैं? एक अच्छा प्रदाता आपको कागजात और प्रक्रिया से पूरी जानकारी देगा, ताकि आप पूरी प्रक्रिया को सही तरीके से समझ सकें।
हमारी सेवा के साथ जुड़े
अगर आप भी कर्ज के जाल में फंस गए हैं और आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं और Loan Settlement का रास्ता अपनाना चाहते है तो आप हमारी Loan Settlement की सेवा के लिए आवेदन कर सकते हैं। हम आपके लोन का सेटलमेंट करने में आपकी सहयता कर्नेगे। इसके साथ ही हम आपको 6 – 8 महीने के अंदर लोन के बोझ से राहत प्रदान करवाते हैं। अगर आपको हमारी सेवा के बारे में और ज्यादा जानकारी प्राप्त करनी हैं तो आप हमें सपर्क कर सकते हैं।
सेटलमेंट की प्रक्रिया का समय अलग – अलग कारकों पर भी निर्भर करता है, जैसे आपके बैंक या लोन देने वाली संस्था की पॉलिसी, बकाया राशि, और आप दोनों के बीच बातचीत। आमतौर पर यह प्रक्रिया 1 से 3 महीने तक का समय ले सकती है।
सेटलमेंट की प्रक्रिया में सबसे पहला कदम बैंक से बातचीत करना होता है, जहां आप अपनी मुश्किलों और भुगतान की स्थिति के बारें में बैंक को समझाते हैं। इसके बाद, बैंक आपकी स्थिति के आधार पर एक सेटलमेंट का ऑफर देता है। अगर आप उस ऑफर को स्वीकार करते हैं, तो बैंक को तय समय सीमा के भीतर भुगतान करना होता है। फिर बैंक लोन को सेटल के रूप में रिपोर्ट करता है, जो कुछ समय ले सकता है।
इस पूरी प्रक्रिया में जितना ज्यादा समय लगेगा, उतना ही आपके CIBIL स्कोर पर प्रभाव डाल सकता है, इसलिए जल्दी से जल्दी समाधान तलाशना बेहतर रहता है।
अगर आपने किसी बैंक से पर्सनल लोन लिया है और किसी कारणवश उसे पूरी तरह चुकाने में असमर्थ होते हैं, तो Loan Settlement आपके लिए एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। Loan Settlement का मतलब होता है कि बैंक और उधारकर्ता (लोन लेने वाला व्यक्ति) के बीच एक समझौता होता है, जिसमें बैंक ब्याज या पेनल्टी को कम करके एक निश्चित राशि पर लोन निपटाने के लिए सहमत हो जाता है। जब Loan Settlement पूरा हो जाता है, तो बैंक एक Loan Settlement Letter जारी करता है, जो इस बात की पुष्टि करता है कि लोनदाता और बैंक के बीच समझौता हुआ है और अब उधारकर्ता पर कोई बकाया नहीं है।
आइए आसान भाषा में इनके बीच का फर्क समझते हैं:
1. परिभाषा (Definition)
2. प्रक्रिया (Process)
3. कर्ज से छुटकारा (Debt Relief)
4. CIBIL स्कोर पर असर
5. लागत और समय (Cost & Time)
इसके निम्नलिखित फायदे और नुकसान होते हैं:
फायदे
नुक्सान
नीचे हम विस्तार से जानेंगे कि यह कैसे किया जा सकता है।
1. सबसे पहले बैंक से संपर्क करें
2. OTS (One-Time Settlement) का प्रस्ताव मांगे
3. सेटलमेंट की डील को लिखित में लें (Settlement Letter/NOC)
4. CIBIL स्कोर पर असर को समझें
5. भविष्य में पुनः डिफॉल्ट से बचें
हां, Loan Settlement का सीधा और नकारात्मक असर गारण्टर पर भी पड़ता है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं:
गारण्टर (Guarantor) वो व्यक्ति होता है जो लोन लेने वाले की क्रेडिटवर्थीनेस (भुगतान करने की क्षमता) का समर्थन करता है। अगर उधारकर्ता डिफॉल्ट कर देता है, तो गारण्टर से वह रकम वसूली जा सकती है। इसलिए, बैंक या NBFC के लिए गारण्टर की भूमिका बहुत अहम होती है।
क्रेडिट स्कोर पर असर:
Loan Settlement को credit default के रूप में माना जाता है। जब यह सेटलमेंट CIBIL या अन्य क्रेडिट ब्यूरो को रिपोर्ट होता है, तो गारण्टर के नाम के साथ भी यह जुड़ सकता है, जिससे उसका क्रेडिट स्कोर गिर सकता है।
भविष्य के लोन लेने में दिक्कत:
अगर गारण्टर भविष्य में खुद लोन या क्रेडिट कार्ड के लिए आवेदन करता है, तो यह सेटलमेंट उसकी योग्यता (loan eligibility) को कम कर देता है। बैंक उसे high-risk borrower की तरह देख सकते हैं।
वित्तीय और कानूनी दायित्व:
अगर बैंक सेटलमेंट नहीं मानता हैं, तो वह कानूनी रूप से गारण्टर से बकाया राशि की वसूली कर सकता है। इसके लिए उसे नोटिस या केस भी भेजा जा सकता है।
आखिर में, यह स्पष्ट है कि Loan Settlement की प्रक्रिया सिर्फ उधारकर्ता तक ही सीमित नहीं रहती, बल्कि इसका प्रभाव गारण्टर (Guarantor) पर भी पड़ता है। जब भी कोई लोन सेटल किया जाता है, तो वह बैंक की नज़र में एक तरह का डिफॉल्ट होता है और इसे क्रेडिट ब्यूरो को “settled account” के रूप में रिपोर्ट किया जाता है। इसी वजह से, गारण्टर की क्रेडिट रिपोर्ट भी इससे प्रभावित हो सकती है, क्योंकि वह उस लोन का एक कानूनी जिम्मेदार पक्ष होता है।
इसके अलावा, अगर गारण्टर को इस सेटलमेंट की जानकारी नहीं दी गई, तो वह भविष्य में लोन अप्लाई करते समय अस्वीकृति का सामना कर सकता है। इसलिए, यह जरूरी हो जाता है कि कोई भी व्यक्ति गारण्टर बनने से पहले पूरी तरह स्थिति को समझे और उधारकर्ता की वित्तीय स्थिति पर भरोसा करने के साथ-साथ खुद की वित्तीय सुरक्षा के उपाय भी करे।
अंत में, गारण्टर बनना एक बड़ी जिम्मेदारी है। यह फैसला सोच-समझकर और पूरी जानकारी के साथ ही लिया जाना चाहिए, क्योंकि इससे न केवल आपकी वित्तीय छवि प्रभावित हो सकती है, बल्कि भविष्य की योजनाएं भी बेकार हो सकती हैं। इसलिए, सचेत रहें, जानकारी रखें और जिम्मेदारी को समझकर ही कोई निर्णय लें।
Que: Loan Settlement और लोन रिपेमेंट में क्या अंतर है?
Ans: लोन रिपेमेंट का मतलब है पूरे लोन और ब्याज की तय रकम समय पर चुकाना। Loan Settlement का मतलब है कि बैंक कुछ राशि माफ कर देता है और बाकी रकम लेकर खाता बंद कर देता है।
Que: क्या Loan Settlement करने से CIBIL स्कोर पर असर पड़ता है?
Ans: हां, Loan Settlement को CIBIL रिपोर्ट में “Settled” के रूप में दिखाया जाता है, जो भविष्य में आपकी क्रेडिट योग्यता को प्रभावित कर सकता है। इससे स्कोर घट सकता है।
Que: OTS (One Time Settlement) स्कीम क्या है?
Ans: OTS एक ऐसी योजना होती है जिसमें बैंक उधारकर्ता को एक निश्चित राशि एकमुश्त (या निर्धारित किश्तों में) चुकाकर लोन से मुक्त होने का मौका देता है। इसमें कुछ ब्याज या मूलधन माफ किया जा सकता है।
Que: NPA क्या होता है?
Ans: NPA का मतलब होता है Non-Performing Asset, यानी ऐसा लोन जिसकी EMI या ब्याज की किश्तें 90 दिनों (3 महीने) से ज्यादा समय तक नहीं चुकाई गई हैं। ऐसे लोन को बैंक “बुरा लोन” मानते हैं और NPA घोषित कर देते हैं।
Que: क्या NPA घोषित होने के बाद भी लोन चुकाया जा सकता है?
Ans: हां, NPA घोषित होने के बाद भी लोन चुकाया जा सकता है। इसके लिए आप बैंक से संपर्क कर One Time Settlement (OTS) या किश्तो में भुगतान करने की व्यवस्था कर सकते हैं।