
IBC Code 2016 और लोन सेटलमेंट के बीच का संबंध आज के समय में बहुत जरुरी हो गया है। सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि IBC यानी Insolvency and Bankruptcy Code एक ऐसा कानून है, जो लोन न चुकाने वाले व्यक्तियों या कंपनियों के खिलाफ दिवालियापन की प्रक्रिया शुरू करने का अधिकार देता है। वहीं दूसरी ओर, लोन सेटलमेंट एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बैंक और कर्जदार आपसी सहमति से कर्ज को कम राशि में चुकता करने का निर्णय लेते हैं।
अब अगर हम इन दोनों के कनेक्शन की बात करें, तो यह साफ है कि IBC एक कानूनी दबाव का माध्यम बन चुका है, जिसके चलते कई बार कर्जदार बैंक से सेटलमेंट के लिए आगे आते हैं। उदाहरण के लिए, जब कोई कंपनी डिफॉल्ट करती है और बैंक IBC प्रक्रिया शुरू करता है, तो कंपनी समाधान योजना (Resolution Plan) लेकर आती है, जिसमें आंशिक भुगतान या पुनर्गठन शामिल होता है। यह भी एक प्रकार का लोन सेटलमेंट ही होता है, लेकिन यह न्यायिक और नियंत्रित प्रक्रिया के अंतर्गत आता है।
इसके साथ ही, व्यक्तिगत लोन मामलों में भी IBC का डर दिखाकर बैंक कर्जदार से बातचीत करते हैं और समाधान की कोशिश करते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि IBC और लोन सेटलमेंट दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।
भारत में जब कोई व्यक्ति या कंपनी बैंकों या वित्तीय संस्थाओं से लोन लेती है और किसी कारणवश उसे समय पर चुका नहीं पाती, तो यह स्थिति ‘लोन डिफॉल्ट’ कहलाती है। ऐसे मामलों में बैंक अपने पैसे की वसूली के लिए अलग-अलग कानूनी रास्तों का सहारा लेते हैं। इन्हीं रास्तों में से एक है – IBC Code 2016, यानी Insolvency and Bankruptcy Code, 2016। यह कानून विशेष रूप से उन हालातों के लिए बनाया गया है जब कोई कर्जदार अपने कर्ज चुकाने में असमर्थ हो जाता है।
सबसे पहले जानते हैं कि IBC Code 2016 क्या है? यह कानून भारत सरकार द्वारा वर्ष 2016 में लागू किया गया था, ताकि कर्ज की वसूली को तेज़, पारदर्शी और निष्पक्ष बनाया जा सके। इससे पहले जब कोई कंपनी दिवालिया हो जाती थी, तो उसकी संपत्तियों की बिक्री और लोन की वसूली में कई साल लग जाते थे। परंतु IBC लागू होने के बाद अब 180 से 270 दिनों के अंदर ही पूरा समाधान निकाला जा सकता है। इससे बैंकों को अपने पैसे की जल्दी वसूली संभव हो पाती है।
अब बात करते हैं लोन सेटलमेंट की। जब कोई व्यक्ति बैंक से लिया गया लोन चुकाने की स्थिति में नहीं होता हैं, तो वह बैंक से “सेटलमेंट” की मांग कर सकता है। इसमें बैंक कुछ राशि माफ कर देता है और बाकी रकम एकमुश्त चुकाने पर मामला समाप्त मान लिया जाता है। हालांकि, यह आपकी CIBIL रिपोर्ट पर नकारात्मक असर डालता है। लेकिन कभी-कभी यह अंतिम विकल्प के रूप में देखा जाता है।
आइए अब आगे इस लेख में विस्तार से जानें कि IBC कैसे काम करता है, लोन सेटलमेंट प्रक्रिया कैसे प्रभावित होती है और दोनों का आपस में क्या संबंध है।
यह एक ऐसी वित्तीय प्रक्रिया होती है जिसमें बैंक या वित्तीय संस्था लोन लेने वाले व्यक्ति को पूरी बकाया लोन की राशि को चुकाने के बजाय कम राशि देकर लोन निपटाने का मौका देती है। यह सुविधा उन लोगों के लिए होती है जो किसी कारण से अपना लोन समय पर नहीं चुका पाते हैं और लगातार डिफॉल्ट कर रहे होते हैं।
सेटलमेंट के तहत बैंक एकमुश्त राशि (लंपसम अमाउंट) पर सहमति बना सकता है, जिससे लोन बंद हो जाता है। हालांकि, यह ध्यान रखना जरूरी है कि Loan Settlement करने से आपका CIBIL स्कोर प्रभावित हो सकता है, जिससे भविष्य में आपको लोन लेने में मुश्किल हो सकती है। इसलिए, इसे अंतिम विकल्प के रूप में ही अपनाना चाहिए।
जब कोई व्यक्ति अपने पर्सनल लोन की EMI समय पर चुकाने में असमर्थ हो जाता है और लंबे समय तक बकाया राशि जमा हो जाती है, तो बैंक या वित्तीय संस्था Loan Settlement का विकल्प देती है। इसमें बैंक ग्राहक को पूरी बकाया राशि के बजाय रियायती रकम (discounted amount) चुकाने का मौका देता है, जिससे लोन का मामला निपट जाता है।
सेटलमेंट की प्रक्रिया में ग्राहक और बैंक के बीच बातचीत होती है, जहां बैंक इस बात की पुष्टि करता है कि ग्राहक लोन का पूरा भुगतान नहीं कर सकता हैं। इसके बाद, बैंक एक सिंगल-शॉट पेमेंट ऑफर देता है, जो आमतौर पर बकाया लोन राशि से कम होता है। जब ग्राहक इस सहमत राशि का भुगतान कर देता है, तो बैंक लोन को “Settled” के रूप में रिपोर्ट करता है। हालांकि, यह CIBIL स्कोर पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है क्योंकि इसे “Complete Payment” नहीं माना जाता हैं।
इसलिए, Loan Settlement को अंतिम विकल्प के रूप में ही चुनना चाहिए और अगर संभव हो, तो लोन रीपेमेंट प्लान, लोन री-स्ट्रक्चरिंग या अन्य वित्तीय समाधान पर विचार करना चाहिए ताकि CIBIL Score खराब न हो।
निम्नलिखित दस्तावेजों की जरुरत होती हैं:
अगर आप इसे ऑनलाइन अप्लाई करना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए आसान स्टेप्स को फॉलो करें:
बैंक की वेबसाइट या ऐप पर जाएं
कस्टमर सपोर्ट सेक्शन देखें
सेटलमेंट करने के लिए रिक्वेस्ट फॉर्म भरें
जरूरी दस्तावेजो को अपलोड करें
सबमिट करें और बैंक की तरफ से जवाब आने का इंतजार करें
बैंक के ऑफर को समझें
भुगतान करें
हालांकि, Loan Settlement और Credit Card Loan Settlement दोनों का उद्देश्य कर्जदार को राहत देना होता है, लेकिन इनमें कुछ महत्वपूर्ण अंतर भी होते हैं।
अंतर के बिंदु | Loan Settlement | Credit Card Loan Settlement |
प्रकार | किसी भी प्रकार के लोन (पर्सनल, होम, कार, एजुकेशन, आदि) का निपटारा | केवल क्रेडिट कार्ड के बकाया राशि का निपटारा |
सेटलमेंट प्रक्रिया | बैंक एकमुश्त राशि को तय करता है, जिसे चुकाने पर लोन सेटल हो जाता है। | क्रेडिट कार्ड कंपनी एक तय की गई राशि पर समझौता करती है। |
CIBIL स्कोर पर प्रभाव | CIBIL स्कोर 50-100 पॉइंट तक गिर सकता है और भविष्य में लोन लेना मुश्किल हो सकता है | CIBIL स्कोर पर ज्यादा प्रभाव पड़ता है, और नए क्रेडिट कार्ड पाना मुश्किल हो सकता है। |
भविष्य में लोन मिलने की संभावना | होम लोन, कार लोन या अन्य लोन प्राप्त करने में समस्या आ सकती है | क्रेडिट कार्ड कंपनियां कार्ड जारी करने से इनकार कर सकती हैं। |
Loan Settlement का आपके CIBIL स्कोर पर सीधा और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जब कोई व्यक्ति किसी बैंक या NBFC से लोन लेता है और किसी कारणवश पूरी राशि चुकाने में असमर्थ होता है, तो बैंक उसे एक समझौता करने का मौका देता है, जिसे Loan Settlement कहा जाता है।
हालांकि, Loan Settlement और Loan Closure में बहुत बड़ा अंतर होता है। अगर आप अपने लोन की पूरी राशि चुकाकर उसे बंद करते हैं, तो यह आपकी क्रेडिट रिपोर्ट में “Closed” के रूप में दर्ज होता है, जिससे आपका CIBIL स्कोर बेहतर होता है। लेकिन अगर आपने लोन की कुछ राशि बैंक के साथ समझौते के तहत माफ करवा ली है, तो इसे “Settled” के रूप में रिपोर्ट किया जाता है, जो आपके क्रेडिट स्कोर को नुकसान पहुंचा सकता है।
अगर आपने लोन सेटल कर लिया है और अब CIBIL स्कोर सुधारना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कदम उठा सकते हैं:
यहां कुछ जरुरी बिंदुओं पर ध्यान देने की जरुरत है, जो आपको सही Loan Settlement सर्विस चुनने में मदद करेंगे:
सर्विस प्रदाता की प्रमाणिकता को चेक करें
सेटलमेंट की सर्विस को लेने से पहले, यह सुनिश्चित करें कि जिस सर्विस प्रदाता से आप मदद ले रहे हैं, वह वित्तीय संस्थाओं और बैंकों के साथ रजिस्टर्ड और प्रमाणित हो। एक भरोसेमंद सर्विस प्रदाता ही आपको सही मार्गदर्शन और सहायता प्रदान कर सकता है। ऑनलाइन रिव्यू और ग्राहक की फीडबैक देखना एक अच्छा तरीका हो सकता है।
सेवा शुल्क और अन्य खर्चों की भी जांच करें
कई सर्विस प्रदाता सेवा शुल्क भी लेते हैं, लेकिन यह सुनिश्चित करें कि शुल्क ज्यादा न हो और कोई छिपे हुए खर्च न हों। सर्विस प्रदाता से पहले से समझौता करें कि कौन सी सेवाएं मुफ्त हैं और किनके लिए आपको अतिरिक्त भुगतान करना होगा।
सेटलमेंट प्रक्रिया को समझें
सर्विस प्रदाता द्वारा दी जाने वाली सेटलमेंट की प्रक्रिया को ध्यान से समझें। क्या वे आपकी पूरी स्थिति को समझते हैं और बैंक के साथ बातचीत करने के लिए आपको बेहतर समाधान प्रदान करते हैं? एक अच्छा प्रदाता आपको कागजात और प्रक्रिया से पूरी जानकारी देगा, ताकि आप पूरी प्रक्रिया को सही तरीके से समझ सकें।
हमारी सेवा के साथ जुड़े
अगर आप भी कर्ज के जाल में फंस गए हैं और आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं और Loan Settlement का रास्ता अपनाना चाहते है तो आप हमारी Loan Settlement की सेवा के लिए आवेदन कर सकते हैं। हम आपके लोन का सेटलमेंट करने में आपकी सहयता कर्नेगे। इसके साथ ही हम आपको 6 – 8 महीने के अंदर लोन के बोझ से राहत प्रदान करवाते हैं। अगर आपको हमारी सेवा के बारे में और ज्यादा जानकारी प्राप्त करनी हैं तो आप हमें सपर्क कर सकते हैं।
सेटलमेंट की प्रक्रिया का समय अलग – अलग कारकों पर भी निर्भर करता है, जैसे आपके बैंक या लोन देने वाली संस्था की पॉलिसी, बकाया राशि, और आप दोनों के बीच बातचीत। आमतौर पर यह प्रक्रिया 1 से 3 महीने तक का समय ले सकती है।
सेटलमेंट की प्रक्रिया में सबसे पहला कदम बैंक से बातचीत करना होता है, जहां आप अपनी मुश्किलों और भुगतान की स्थिति के बारें में बैंक को समझाते हैं। इसके बाद, बैंक आपकी स्थिति के आधार पर एक सेटलमेंट का ऑफर देता है। अगर आप उस ऑफर को स्वीकार करते हैं, तो बैंक को तय समय सीमा के भीतर भुगतान करना होता है। फिर बैंक लोन को सेटल के रूप में रिपोर्ट करता है, जो कुछ समय ले सकता है।
इस पूरी प्रक्रिया में जितना ज्यादा समय लगेगा, उतना ही आपके CIBIL स्कोर पर प्रभाव डाल सकता है, इसलिए जल्दी से जल्दी समाधान तलाशना बेहतर रहता है।
अगर आपने किसी बैंक से पर्सनल लोन लिया है और किसी कारणवश उसे पूरी तरह चुकाने में असमर्थ होते हैं, तो Loan Settlement आपके लिए एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। Loan Settlement का मतलब होता है कि बैंक और उधारकर्ता (लोन लेने वाला व्यक्ति) के बीच एक समझौता होता है, जिसमें बैंक ब्याज या पेनल्टी को कम करके एक निश्चित राशि पर लोन निपटाने के लिए सहमत हो जाता है। जब Loan Settlement पूरा हो जाता है, तो बैंक एक Loan Settlement Letter जारी करता है, जो इस बात की पुष्टि करता है कि लोनदाता और बैंक के बीच समझौता हुआ है और अब उधारकर्ता पर कोई बकाया नहीं है।
आइए आसान भाषा में इनके बीच का फर्क समझते हैं:
1. परिभाषा (Definition)
2. प्रक्रिया (Process)
3. कर्ज से छुटकारा (Debt Relief)
4. CIBIL स्कोर पर असर
5. लागत और समय (Cost & Time)
इसके निम्नलिखित फायदे और नुकसान होते हैं:
फायदे
नुक्सान
आइए आसान शब्दों में समझते हैं।
जब कोई व्यक्ति या कंपनी बैंक का पूरा लोन चुकाने में असमर्थ हो जाती है, तो बैंक उसके साथ एक समझौता (Settlement) करता है। इसमें:
इसमें:
अब बात करते हैं असली कनेक्शन की:
a. समाधान की प्रक्रिया का हिस्सा:
IBC के तहत जब किसी डिफॉल्टर के खिलाफ कार्यवाही होती है, तो कई बार उसका समाधान एक Settlement Plan के रूप में निकलता है। इसमें बैंकों को तय रकम मिलती है, और कंपनी को शेष कर्ज से राहत मिलती है। यह एक तरह का लोन सेटलमेंट ही होता है — परंतु यह कानूनी रूप से नियंत्रित और NCLT द्वारा स्वीकृत होता है।
b. दबाव बनाने का माध्यम:
जब कोई व्यक्ति या कंपनी लोन नहीं चुकाती हैं, तो बैंक IBC की प्रक्रिया शुरू करने की धमकी देकर सेटलमेंट पर बातचीत करते हैं। इससे डिफॉल्टर बातचीत करने और सेटलमेंट करने के लिए मजबूर हो जाता है।
c. सुरक्षित रास्ता:
IBC के माध्यम से किया गया लोन सेटलमेंट अधिक पारदर्शी, न्यायिक और समयबद्ध होता है। इससे बैंकों को भरोसेमंद वसूली और डिफॉल्टर को कानूनी राहत मिलती है।
नीचे हम विस्तार से जानेंगे कि यह कैसे किया जा सकता है।
1. सबसे पहले बैंक से संपर्क करें
2. OTS (One-Time Settlement) का प्रस्ताव मांगे
3. सेटलमेंट की डील को लिखित में लें (Settlement Letter/NOC)
4. CIBIL स्कोर पर असर को समझें
5. भविष्य में पुनः डिफॉल्ट से बचें
यह समझना ज़रूरी है कि IBC Code 2016 और लोन सेटलमेंट के बीच में गहरा और व्यावहारिक संबंध है। जहां एक ओर लोन सेटलमेंट एक ऐसा विकल्प है, जिसमें बैंक और ग्राहक आपसी सहमति से कर्ज चुकाने की प्रक्रिया तय करते हैं, वहीं दूसरी ओर IBC एक कानूनी ढांचा है जो इस पूरी प्रक्रिया को ज्यादा सुनियोजित, पारदर्शी और समयबद्ध बनाता है।
इसके अलावा, IBC की वजह से लोन डिफॉल्ट करने वालों पर मानसिक और कानूनी दबाव बढ़ता है, जिससे वे सेटलमेंट या समाधान की दिशा में कदम उठाने को मजबूर होते हैं। यह न सिर्फ बैंकों के लिए फ़ायदेमदं होता है, बल्कि कर्जदारों के लिए भी राहत देने वाला होता है। पहले जहां लोन की वसूली में सालों लग जाते थे, अब वही प्रक्रिया कुछ महीनों में पूरी की जा सकती है।
इसके साथ ही, यह भी ध्यान देने की बात है कि IBC केवल कंपनियों के लिए नहीं बल्कि अब व्यक्तिगत डिफॉल्टरों पर भी लागू होता है, जिससे इसका दायरा और प्रभाव दोनों बढ़ गया है। इसका सीधा असर यह हुआ है कि अब व्यक्तिगत लोन मामलों में भी बैंकों ने कानूनी प्रक्रिया को तेज़ करना शुरू कर दिया है, जिससे सेटलमेंट की संभावना और बातचीत की गुंजाइश बढ़ जाती है।
Que: Loan Settlement और लोन रिपेमेंट में क्या अंतर है?
Ans: लोन रिपेमेंट का मतलब है पूरे लोन और ब्याज की तय रकम समय पर चुकाना। Loan Settlement का मतलब है कि बैंक कुछ राशि माफ कर देता है और बाकी रकम लेकर खाता बंद कर देता है।
Que: क्या Loan Settlement करने से CIBIL स्कोर पर असर पड़ता है?
Ans: हां, Loan Settlement को CIBIL रिपोर्ट में “Settled” के रूप में दिखाया जाता है, जो भविष्य में आपकी क्रेडिट योग्यता को प्रभावित कर सकता है। इससे स्कोर घट सकता है।
Que: OTS (One Time Settlement) स्कीम क्या है?
Ans: OTS एक ऐसी योजना होती है जिसमें बैंक उधारकर्ता को एक निश्चित राशि एकमुश्त (या निर्धारित किश्तों में) चुकाकर लोन से मुक्त होने का मौका देता है। इसमें कुछ ब्याज या मूलधन माफ किया जा सकता है।
Que: NPA क्या होता है?
Ans: NPA का मतलब होता है Non-Performing Asset, यानी ऐसा लोन जिसकी EMI या ब्याज की किश्तें 90 दिनों (3 महीने) से ज्यादा समय तक नहीं चुकाई गई हैं। ऐसे लोन को बैंक “बुरा लोन” मानते हैं और NPA घोषित कर देते हैं।
Que: क्या NPA घोषित होने के बाद भी लोन चुकाया जा सकता है?
Ans: हां, NPA घोषित होने के बाद भी लोन चुकाया जा सकता है। इसके लिए आप बैंक से संपर्क कर One Time Settlement (OTS) या किश्तो में भुगतान करने की व्यवस्था कर सकते हैं।